खुद को प्रधान संपादक और मुख्य संपादक दिखाने की मची होड़।
*गर्त में जा रही पत्रकारिता को बचाने का समय*
रिपोर्ट:दिशा शर्मा,
हरिद्वार। आजकल व्हाट्सएप और फेसबुक खोलते ही हजारों खबरों का अनचाहा बोझ आप पर डाल दिया जाता है,
वेव पोर्टल और फेसबुक पर खुद को जबरन अतिवरिष्ठ पत्रकार साबित करने की चाह में पुलिस, प्रशासन और नेताओ द्वारा ज़ारी की गई विज्ञप्तियो को ज्यों का त्यों कॉपी पेस्ट कर आपके फ़ोन में कबाड़ा खबरों का कचरा भरने वालों की तादात दिन दूनी और रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही है,
इन लोगो को कुछ और आए ना आए बस ये जरूर आता है कि किस तरह से खुद के नाम के आगे मुख्य संपादक और प्रधान संपादक लिखा जाए आज की तारीख में हर कोई सम्पादक कह रहा है, कुछ लोगो ने तो अपनी गाड़ियों तक पर बड़े बड़े अक्षरों में प्रधान संपादक और मुख्य संपादक लिखा लिया है,
सोशल मीडिया खोलते ही आपको ऐसे प्रधान संपादको ओर मुख्य संपादको की भरमार मिल जायेगी, इनमे से कई ऐसे है जिन्होंने अपने पोर्टल बनाकर और फेसबुक आईडी बनाकर अपने नीचे राज्य प्रभारी, जिला प्रभारी और तहसील प्रभारियों तक की थोक से नियुक्तियां कर डाली है, ऐसे प्रधान संपादकों, मुख्य संपादको , राज्य प्रभारियों और ब्यूरो चीफ की सबसे बड़ी पहचान ये होती है कि वो सब बेवजह पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियो से चिपके रहने का प्रयास करते हैं, इनमे से अधिकांश सम्पादक और राज्य प्रभारी हर रोज थाने चौकियों में हाजिरी लगाने पहुंचते जरूर है
कई ऐसे है जो सड़को पर ड्यूटी दे रहे पुलिस कर्मियों से बेवजह चिपके रहते हैं, और आने जानें वालो को देखकर खुद को सच का स्मपादक और राज्य प्रभारी घोषित करने का प्रयास करते रहते हैं, इन सभी का अवतरण मात्र एक दशक के भीतर ही हुआ है जब से संचार क्रांति ने स्मार्ट फोन के जरिए नया जन्म लिया , जिसके बाद तब से लेकर अब तक हर दिन सैकड़ो नए पत्रकार भी जन्म ले रहे हैं,
इनमे से अधिकांश कार्यालयों में लगातार जा जा कर पुलिस थानों, पुलिस मिडिया सैल तथा प्रशासन द्वारा अधिकृत मीडिया कर्मियों को गतिविधियो के बारे में दी जानें वाली जानकारियों के लिए बनाए गए व्हटअप ग्रुप में एड हो जाते हैं जो इनकी सबसे बड़ी लाइफ लाईन साबित होती है हर एक आम आदमी पर ये उसी ग्रुप का रौब भी झाड़ते दिखाईं पड़ते हैं,
*किस किस को करनी चाहिए करवाई*
अगर ये ढर्रा यूं ही चलता रहा तो वो दिन दूर नही जब देश के चौथे स्तंभ पर पूरी तरह से अशिक्षित,
और अयोग्य लोगो का कब्जा हो जायेगा,
ये हमारी व्यवस्था की खूबसूरती है कि आज भी अधिकांश देश वासी पत्रकारों की बातों पर आंख मूंदकर विश्वास करते हैं, आप सोचिए जब सही प्रशिक्षित , शिक्षित और योग्य पत्रकारों की जगह हर जगह ये छपरी टाइप प्रधान संपादक, मुख्य संपादक, राज्य प्रभारी और ब्यूरो चीफ लोगो को अविवेकपूर्ण खबरें देंगे तो हमारा देश और समाज तरक्की के बजाय उल्टा अज्ञानी और हमेशा विवादो से घिरा रहने वाला बन जाएगा,
समाज और देश को इस अनचाही त्रासदी से बचाने के लिए सरकारों को कड़े कानून बनाने होंगे ताकि महर्षि नारद के समय से आज के अत्याधुनिक युग तक में हमेशा से सम्मानित कहा जानें वाला ये पेशा और इसके मूल्य विलुप्त ना हो जाए जो यकीनन किसी भी समाज के लिए जहर के समान होगा
नोट: इस लेख के माध्यम से लेखिका ने प्रयास किया है कि किसी अधिकृत मीडिया कर्मी की भावनाएं आहत ना हो,