कांगड़ी, गाजीवाली और श्यामपुर में अवैध कॉलोनियों की बाढ़।
रिपोर्ट:राहुल शर्मा
अवैध कॉलोनी की बाढ़ में एक और नई कॉलोनी ईजाद
:बिना विकास प्राधिकरण अप्रूव्ड के कट रही कॉलोनी।
हरिद्वार ।कांगड़ी-गाज़ीवाली, श्यामपुर छेत्र में हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण की अनुमति के बगैर कालोनियां काटी जा रहीं हैं। कॉलोनाइजर प्लॉट बेचते समय ग्राहकों को कई सुविधा देने का वादा करते हैं, मगर प्लाट बेचने के बाद ग्राहक अपने को ठगा सा महसूस करते हैं। वही एचआरडीए का अवैध कॉलोनी की सीलिंग के खिलाफ कार्रवाई करने के बावजूद भी बगैर अनुमति के कालोनियां कटना कहीं ना कहीं प्राधिकरण को भी संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है।
पूर्व में कांगड़ी श्यामपुर क्षेत्र की आबादी काफी कम हुआ करती थी, लेकिन हरिद्वार शहर की अधिकांश जगहों पर कॉलोनी काटने के बाद कॉलोनाइजरों का रुख श्यामपुर क्षेत्र की और मुड़ गया। पिछले करीब 10 वर्षों में क्षेत्र में सैकड़ो कालोनिया काटी जा चुकी हैं। प्लॉट बेचते समय कॉलोनाइजर ग्राहकों से कॉलोनी में सड़क, बिजली, पानी, पानी की निकासी, पार्क सहित अन्य के सुविधा देने का वादा करते हैं, मगर प्लाट बेचने के बाद कॉलोनाइजर जहां अपने घर की ओर रुख कर लेते हैं, वहीं प्लॉट लेने वाला ग्राहक अपने को ठगा सा महसूस करता है। वर्तमान में भी क्षेत्र की 90 फीसदी कलियों में बिजली, पानी और सड़क की सुविधा नहीं है। मगर उसके बावजूद भी क्षेत्र में आए दिन नई कालोनियां काटी जा रहे हैं। पिछले कुछ समय से हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण बगैर मानचित्र के मकान बनाने वालों के खिलाफ सीलिंग की कार्रवाई कर रहा है, वहीं उसके बावजूद क्षेत्र में बगैर हरिद्वार रुड़की विकास प्राधिकरण के कॉलोनी काटना प्राधिकरण को भी संदेह के घेरे में खड़ा कर रहा है। बता दें कि कांगड़ी गाज़ीवाली में आज भी ऐसी कई कालोनियां देखने को मिल जाएंगी, जहाँ पानी तो दूर सड़क भी देखने को नहीं मिलेगी। सबसे बड़ा सवाल है कि मध्यमवर्गीय परिवार जीवन मेहनत कर पैसे कमा कर अपना आशियाना बनाने की शुरूवात करता है, और एचआरडीये उस पर सलिंग की कारवाई करता है, मगर ऐसे कॉलोनाइजरों के खिलाफ कारवाई करने में दिलचस्पी नहीं दिखाता है।
अधिकांश कॉलोनाइजर राजनीतिक पार्टी से जुड़े——-
छेत्र के अधिकांश कॉलोनाइजर राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हैं, या फिर कहें कि राजनीति में ऐसे लोगो का सीधा दखल होना भी इनके खिलाफ किसी प्रकार का एक्सन ना होना शायद अधिकारियों की मजबूरी हो।